Book Title: Prakrit Vakyarachna Bodh
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 587
________________ ५७० प्राकृत वाक्यरचना बोध उपताप करना-दू(५६) कटाक्ष करना-कडक्ख (४५) उपदेश देना-पच्चाहर (७०) कतरना-कत्त (२३) उपयोग में आना-पकप्प (६७) कम होना–हस (ह्रस्व) (६१) उपयोग में लेना--उवजूंज (१७) कमाना-अज्ज (३३) विढव उपस्थित करना-पणाम (८०) उपस्थित होना-पज्जुवट्ठा (७२) करना-पकुव्व (६७) कर (४५) उपालंभ देना-झङ्ख, पच्चार, वेलव, कण (१०१) उवालम्भ (१०५) करने का प्रारंभ करना-पकर (५३) उपासना करना-उवास (२७) पकुण (६७) उबालना-कढ (४५) कह (क्वथ्) कलंकित करना--लंछा(८३) (४६) अट्ट (१०४) कल्पना करना-कप्प (४५) उलटाना-ओयत्त (४०) कल्याण करना-भद (६३) उल्लंघन करना-अइवत्त (१६) कवच धारण करना-संणज्झ (६६) अइइ (३३) कम (४०) कसरत करना-वायाम (६०) उल्लास पाना-ऊसल, ऊसम्म, कहना (बोलना)-कह (८) वज्जर पिल्लस, पुलआअ, गुजोल, (१६) कथ (२५) अक्खा (३०) आरोअ, उल्लस (१०७) दिस (५८) आइक्ख (३२) आअक्ख (४२) वक्खा (८७) ऊंचा करना-थंग (५४) वय (८८) आहा (६६)पज्जर, ऊंचा कूदना---उक्कुद्द (२६) उप्पाल, पिसुण, संघ, बोल्ल, ऊंचा जाकर गिरना--पडिवय चव, जप, सीस. साह (१००) (७७) देखो, बोलना ऊपर चढना-आरो (१०) देखो कांपना-आयंव (४२) कंप (४५) चढना कांसना-कान (४६) ए काटना-दू (५६) तक्ख (७३) लाय एकत्रित करना—पिंड (४०) (८५) लुअ(८६) एक बार स्पर्श करना-आमुस कानी नजर से देखना-णिआर (६२) (१०१) एकाग्र चिंतन करना-पणिहा (८०) काम में आना-कप्प (४५) पकप्प कंपाना-धुव्व (५१)धुण (६५) ध्रुव (१०१) काम में लगना-आअड्ड, वावर (१०२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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