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प्राकृत वाक्यरचना बोध
तविस्सइ अहुणा समयो सीओ अओ सिग्धं चल । तुज्झ साउज्जं को करिस्सइ ? अमुम्मि वरिसम्मि तुमं कि अण्णं वविस्ससि ? अहं सोमवारे लुंचिहिमि । सो तुं णियघरं दरिसिस्सइ । अहं तुमए सह न आलविस्सामि । सुरेसो सुवे दिक्खिहिइ । सा धेणुं न दुहिस्सइ । अम्हे कम्मसत्तुं जिणिस्साम । प्राकृत में अनुवाद करो
उसकी पसली साफ दिखाई देती है । मेरा कलेजा चुराकर कौन ले गया ? मूत्र न आने से उसके लिंग में पीडा है। उसने तुझे एडी से मारा। इस शहर में एक विद्यापीठ है । नीचे का वस्त्र कमर के आधार पर टिकता है । जंघा मोटी नहीं होनी चाहिए क्योंकि उससे चलने में कठिनाई होती है । भगवान के चरणों में देवता भी नमस्कार करते हैं । घुटने का व्यायाम करना चाहिए। उसकी नाभि का आकार सुंदर नहीं है। नितंब को बढाना नहीं चाहिए । धातु का प्रयोग करो
वह पर्वत से नीचे आता है। गांव के लोग अतिथि नेता के सामने जाते हैं । प्रतिदिन अपनी गलतियों का निरीक्षण करना चाहिए। वह भोजन को स्वाद लेकर खाता है । पहाड से उतरती हुई गाडी से वह उछल नीचे गिर गया। नीचे उतरना कोई नहीं चाहता । वीर योद्धा युद्ध से पीछे नहीं हटता है। तुम्हें मेरे लिए प्रार्थना करनी चाहिए। खुले स्थान को मत ढको । वह पूछने पर भी बहुत कम बोलता है । भविष्यत्कालिक प्रत्ययों का प्रयोग करो
मेरे स्थान पर कौन आएगा? हमारे साथ तीर्थयात्रा में कौन जाएगा। भारत का प्रधान मंत्री कौन बनेगा ? उसका विवाह कब होगा? उसकी बीमारी की चिकित्सा कौन करेगा । वह विदेश कब जाएग? प्रेक्षाध्यान की कक्षा कौन लेगा? क्या उसके पुत्र होगा ? तुम्हारे भाग्य का उदय कब होगा? वह गरीब क्या कभी धनवान बनेगा ? तुम सभा को कब उद्बोधन करोगे ? क्या वह आज कथा कहेगा?
प्रश्न १. धातु के अन्त्य को आ आदेश कहां होता है ? २. काहं और दाहं रूप किस नियम से और किस प्रत्यय के स्थान पर __बना है ? ३. भविष्यत् अर्थ में होने वाले मि प्रत्यय के स्थान पर किन धातुओं को
क्या आदेश होता है ? ४. पीठ, कमर, जांघ, घुटना, पैर, नाभि, नितंब, लिंग, टांग, पसली
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