Book Title: Pradyumnakumara Cupai
Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 15
________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई कमलशेखर इम कहइ--"एम कही पोताना नाम साथे "वाचक" पदनो उल्लेख करेलो छे. आथी स्पष्ट थाय छे के संवत १६०० थी संवत १६०९ नो वच्चे तेमने "वाचक" पद प्राप्त थयु हशे तेमणे प्राप्त करेली एवो बीजी पदवीओ विषे के तेमना निर्वाणसमय विषे कशी माहिती प्राप्त थई शकी नथी. अलबत्त, तेमना शिष्य-प्रशिष्योए विनम्रभावे पोतानी रचनाओमां पोताना आ पूजनीय गुरुनु स्मरण करेलुं छे. संवत १६४३ मां महा सुद ३ने रविवारे बंमणवाडामां वा. कमलशेखरना प्रशिष्य विनयशेखरे रचेली 'यशोभद्र चोपाई" मां, तेमने पोताना गुरुमहना यशोगान गाता वाचनाचार्य तरीके बिरदावेला छे' : "विधिपख्य नायक महिमनिधान, तपते जिहां जगि उदयु भांण दरिसन देखिइं परमाणंद, वंदउ धरममूरति सुरींद १३९ पली वंदउ सहि गुरु आपणा, जेहनइ नांमिइं नही रिधिमणा श्री श्री कमलशेखर वणारीस, समरु नाम तेहनु निसिदीस १४०२ आज कविए पोते संवत १६४४ श्रावण सुदि १३ ने रविवारे आगरामां रचेली "शांति मृगसुन्दरी चोपाई" मां पोताना गुरुना गुरु वा० कमलशेखरना गुणगान आ प्रमाणे कर्या छः स्त्रोशंगार भ्यांन बलि वेदिई संवच्छर सुलहीजइ जी श्रावण शुदि तेरसि रविवारइ सतीयां सुगुण कहीजई जी ३२६ युगप्रधान जगि अंचलगछपति गुणमणिरयणभंडार जी श्री श्री धर्ममूरतिसूरीश्वर श्री संघकुं सुखकार जी ३२७ तास तणइ पक्षि गुणिरयणायर कमलशेखर वणारीस जी क्रियापात्र हुआ एणि कालिइ सघलइ कित्ति विसेस जी ३२९ आथी स्पष्ट थाय छे के वाचनाचार्य कमलशेखर गुणोना भंडार तेम ज क्रियापात्र हता. चोगम तेमनी कीर्ति व्याप्त हती. वा. कमलशेखरना आ प्रशिष्य विनयशेखर सिवाय, तेमना बीजा प्रशिष्यो श्री भाव. शेखर तथा विजयशेखरे पण पोताना गुरुना गुरुने पोतानी कृतिओमां भावभरी स्मरणांजलि आपी छे. भावशेखरे संवत १६८१ मा रचेलो "धना महामुनि चुपई” मां वा. कमलशेखरनु स्मरण आ प्रमाणे कर्यु छ : “संवत सोलसइं वरस एकासीइ रे अति भलु मास विइंसाख तेरसि दिन भोमवारिइं करीजी स्वाती नक्षत्र सुभ लाख ४ देखु. १. "वाचक' अने “वाचनाचार्य" मां छेल्लु पद विशेष मानार्ह जणाय छे. शक्य छे के वडील गुरुजनो माटे ए पदवीनो उपयोग थतो होय. ___२. "जैन गुर्जर कविओ, भाग १ लो," पृ. २८५. भूलथी त्यां कर्तानु नाम "विजयशेखर" लख्यु छे “जैन गूर्जर कवि भो" भाग ३, खंड- १ लानां पृ. ७७५ उपर सुधारायुं छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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