Book Title: Pradyumnakumara Cupai Author(s): Kamalshekhar, Mahendra B Shah Publisher: L D Indology AhmedabadPage 13
________________ प्रद्युम्नकुमार-चुपई . नव, खंड कहिउ एणि परइ, राग धन्यासी अंग री माई विजयसेखर वाचक भणि, श्री संघ वडतइ रंगि री माइ' १८ आम विधिपक्ष-अंचलगच्छनी "शेखर" शाखामांथी पालीताणीय नामनी पेटाशाखामां वा. कमलशेखर थइ गया एवो निर्णय करी शकाय एम छे. वा. कमलशेखरना जन्मस्थळ अने जन्मसमय विषे कोई माहिती प्राप्त थती नथी. तेमना माता-पितानु नाम, ज्ञातिविशेष तथा कुटुंब इत्यादि अंगत जीवननी बाबतो विषे पण कोई माहिती मळती नथी. छतां तेमणे पोते रचेली कृतिओ, कोई अन्य कर्तानी तेमणे करेली प्रतिलिपिनी प्रशस्ति के पुषिकाओ, तेमना शिष्यप्रशिष्योनी कृतिओनी प्रशस्तिओ के प्रत-पुष्पिकाओ वगेरे द्वारा तेमना जीवननी केटलीक बाबतो विषे कईक अंशे अनुमानपूर्वकना निर्णयो तारवी शकाय एम छे. आज सुधीमां वा. कमलशेखरनी नीचेनी चार नानी मोटी पद्यकृतिओ उपलब्ध थई छ. १ 'नवतत्त्व चोपाई"२ संवत १६०९ मां, आसो महिनानी त्रीजने दिवसे, सुरतमां रहीने आ कृति रचेली छे. आ कृतिना अंतमां आ प्रमाणे उल्लेख छः "अंतर महूरत समकित धरइ, ते नर अरधु पुद्गल करइ वाचक कमलसेखर इम कहइ, गणिइ भविइ सिद्वपदवी लहइ ६४ विधिपक्षि गछि ए उदयु भाण, श्री धर्ममूर्तिसूरि सुजाण, तास पसाई लहीया भेय, बिसइ छिहुत्तरि हुआ ते ६५ सेबत सोल नवोत्तर वरसि, सूरति आसू त्रितीया दिवसि रची चुपई सोहामणो, भणतां गणतां हुई बुद्धि घणी' ६६ २ “प्रद्युम्नकुमार चुपई" संवत १६२६ नां कार्तिक सुदी १३ ने दिवसे वीरमगाम पासेना मांडलमां, चोमासु रह्याँ हतां त्यारे, छ सर्गमां रचेली आ कृतिना अंतमां आ प्रमाणे उल्लेख छ : "विधिपक्षगछि धर्ममूर्तिसूरि विजयवंत ते गुण भरपूरि कमलशेखर रहीया चउमासि मांडलि नगरइ घणइ उल्हासि ७५४ संवत सोल छवीसई करी दूहा चुपई हीयडइ धरी काती सुदी नइ दिन त्रयोदसी कीघी चुपई मन उल्हसी वणारीस वेजराज तणा सीस दोई तेहना गुंण घणा श्री पुण्यलब्धि उवझायां ईस बीजा लाभशेखर वणारीस तास सीसि रची चुदई सुणियो भवीयां ईक मंन थई चरित्र प्रदिमनकुमारह तणू भणतां सुणतां सुख घणूं ७५७ ।। १. 'जैन गूर्जर कविओ' भाग-३ जो, खण्ड पहेलो, पृ. १००८. २. जुओ परिशिष्ट तथा 'जैन गूर्जर कविओ' -भाग श्रीजो, खण्ड १ लो, पृ. ६६०. ३. 'प्राचीन फागु संग्रह" [सं. भोगीलाल सांडेसरा तथा सोमाभाई पारेख ] मां आ कृतिनु रचनास्थळ, तेना संगदकोए "खंभात" नोध्यु छे. जुओ 'प्राचीन फागु संग्रह' पृ. २३. ते बराबर नथी, 'सुरत" ज जोईए. ४. आ संख्यांक में संपादन करेल पाठ प्रमाणे मूकेला छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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