Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशी कृताः, जगज्जयप्रयाणप्रवणप्रद्युम्नमंगलध्वानानुकारिकंबुकंठीः, पीनोन्नतकठिनस्तनस्तबकैनिजगदेक । चरित्रं वीरमारपालोद्रध्वपालीदर्शयंतीः, हृदयोतमन्मथजवराजितप्तांगकामिपुरुषावगायनार्थ लावण्यसु धाकुंडानीव निजनाभिमंगलानि प्रकटीकुर्वतीः, यौवनमदोन्मत्तविरहिजनशरीरारण्यावगाहनलंपटपंचशरगजेंदबंधनसमर्थकार्तस्वरालानस्तंजानिवोरुयुग्मानि धारयंतीः, त्रिजगत्स्वेबाविहारोत्सुकनिरंकुशकु. सुमायुधानिधयात्रिकसंबलसमुद्गकसन्निभजानुयुग्मालंकृताः, शरीरवाटिकाब्रमणैकलंपटमनोजवामित्र तनरब्रमरनिकरानिलषितमकरंदरसार्पणप्रवणारविंदानीव पादयुगान्यभिव्यंजयंतीः, मनोहरचरणन. खारुणप्रनाभरमिषतो निजांगमिमर्यादातो मीनकेतननवभास्करोद्गममुन्नावयंती, कार्तस्वररत्नजटितललामताटकहारकेयरकंकणकटीसूत्रमंजीराद्यनेकालंकागलंतांगीरप्सरःप्रभतिदेवांगना याकारय तिस्म. तदनंतरमसौ पूर्वोक्तनावसंयुतान विविधवा जित्रवादनविधिकुशलान नानावस्त्रा वृषण वृषितां गान वाजिनवादकदेवान विकुतिस्म. तत्करस्थामितवादिवनिकरमनोहरनादः सर्वेषां कर्णकोटरेऽपरिमितानंदप्रदोऽजवत. एवं समग्रसामग्री विधाय सूर्यामनिर्जरस्तान सर्वानपि सुरान्प्रति जगाद, नो नो निर्जरा यूयं सर्वेऽपि श्रीमद्भगवंत श्रीवर्धमानं जिनेश्वरं त्रिःप्रदक्षिणपूर्वकं नत्वा, तथैव श्रीगौत For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147