Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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चस्त्रिं
प्रदेशी- त्वत्प्रतिबोधस्पृहयाबुरपि स कथंकारमिहागत्य त्वां प्रतिबोधयेत् !! एवंविधं युक्तियुक्तं मुनीशवचनं
निशम्य हादितविवेकदिनकरकरापास्ताझानांधकारावकाशोऽवनीपालो जगाद, हे मुनीश! नूनमद्य
जवदाननशशांकोद्भवनिर्मलवचनकिरणोत्करेणाद्यावधि कठिनाश्मीनृतमपि मे मानसं चंद्रकांतमყდ
परिवाऊतं. श्युक्त्वा प्रदेशीपो मुनीशं प्रणम्य पुनरपि जगाद, हे मुनींद्र ! सदैव जिनधर्मर क्ता दया भूतांतःकरणा च मे पितामही पापालोचनपूर्वकमाराधनापरा पंचत्वं प्राप्तास्ति, सा च न. | वदीयमतानिप्रायेणाचिंत्यशर्मनिंबधनस्वर्गे गता संभवति. सापि चेद जीतती ममा तीवप्रेमभाजनमा सीत्. परमद्यावधि तयापि नाहमत्रागत्य धर्माराधनाय प्रबोधितोऽस्मि, न चास्माहिंसाद्यकार्यान्निवा. स्तिोऽस्मि, ततोऽहं मन्ये यत्स्वर्गादिकं किमपि नास्ति. इति नृपोक्तं निशम्य गणधरेंद्रो जगौ, नो
मीश! सुनातः कृतमृगमदादिसुरनिद्रव्यविलेपनो देहाहितमनोहारिखस्त्राभूषणो धृतसुगंधोपेतवरकुसुमादिमाख्यो देवार्चनार्थ गवस्त्वं केनापि चांमालेन चर्मास्थिवसारक्ताद्यशुचिपदार्थसार्थभृते स्व. गृहे समागमनाय निमंत्रितः किं गमिष्यसि ? राझोक्तमेवंविधेऽशुचिवस्तुमाजने चांडालगृहे तु श. तधा निमंत्र्यमाणोऽप्यहं नैव गामि, मुनिपतिर्जगाद हे मांद! देवा श्रयेवं वचोऽगोचरनाट्या.
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