Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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चरित्रं
प्रदेशी निद्रादंभेन मृर्ग प्रयाताः. दिवा सहस्रकिरणेन चुंबनसंजोगात्सुककामिनायकेनेव वारंवारं स्वकर.
प्रक्षेपेणोदस्यमानापि सतीच स्वकोशहृदयमनुद्घा यंती कुमुदिनी निजनायकं सुधाकिरणमागतं विज्ञाय तदीयातीवकोमलसुखकरकरस्पर्शतोऽतीवमुदितेव कोशोद्घाटनदंचन हास्यं दयाना स्वांग लमसलिलपिउदंनेन हर्षाणि मुमोच. निजांगजं निशाकरमुदितं परिणीतकौमुदीवरकन्यकं च वि. झाय सागरोऽप्युबलझोलकल्लोलकरैरालिंगनोत्सुक व रराज. ब्राह्मणो मोदकोक्करमिव गृहमणि स्तामसोत्करमाकंठ भदायित्वा व्याकुलित व कंपमानः कालजालदंन सकलमप्यमवत. मद. नानलसंतप्तांगा नवपरिणीता प्रमदा स्वपतिमिलनोत्सुका ललाटनटविरचितकस्तु रकावखरीदनेन निशां वर्धापयंतीव शयनावासे समेत्य लज्जया दीपकविध्यापनमिषेण तामसोत्करादरपूर्वक नूपुरझं. कारदंनेन प्रकट दिनश्रियै शापं वितन्वंतीव दृढालिंगनेन निजस्वामिनमतीवानंदमुदपादयत्. स्वकीयस्वामिनं पंकजिनीपतिं पवनवेगोलितसरःसलिलकलोतांदोलिता कंपमानेव कामुकरजनीकरकरस्पर्श निवारय नीव दृढनिकखकीयकोषहारा मकरंदरसबुञ्चांतर्निवहमधुकरकृतकंकारावदंतेन वि. पंतीव तस्थौ. तामसनिशाचरेणापि स्वकीयावसरं प्राप्य गिरिगुहादितो बहिनि सृय गगनलोदि. "
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