Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 95
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशी-|| ऽनेकभविकलोकमगलावलिप्रमोदोत्पादनवरपद्मनिलो मोक्षपद्मालयैकनिवासरूपपदपद्मः श्रीपद्मप्रभा चरित्रं निधो जिनेंद्रो निजचरणारविंदन्यासैनिखिलमपीलामंडलं पावनीकुर्वन सिंहपुगत्यणे पुष्पावतंसार एये समवसृतः. जगत्त्रयजनजनितवंदनं तं जिने वनपालमुखात्तत्र समवसृतं विज्ञाय सिंहसेनोऽ. एy वनीशः प्रमोदसंचयरोमांचितांगो निजतनुजामितपौरपरिवारपरिवृतस्तचंदनार्थ मकलार्डिसम्म नप. वने ययौ. तत्र तं जिनेंद्र त्रिप्रदक्षिणापूर्वकमभिवंद्य स व्युत्पन्नकविजनहृयपद्यैरस्तवत. स्तवनानंतर स यथास्थानमुपविष्टश्चातक श्वातीवहृष्टो जिनेंद्राननसमुन्नवामुपदेशामृतधारावरघोरणीमाकं निपी. य जवनिदाघोद्भवामितसंतापपरंपरां विलयं निनाय. ततोऽधिगतावमरोऽवनीको जगतत्रयेंद्र जिनें; प्रणम्य विनयावनतकायोऽपृचत, हे भगवन् ! ममैतस्य तनयस्यासह्यदेहदुर्गंधकारणं निवेदयित्वा शव्यवन्मदीयांतःकरणविदारिणीं मम शंकां यूयं दूरीकुरुवं? एवंविधानि तदचांसि श्रुत्वा करुणार्णको जिनेंडोऽपि घनस्तनितगजीरध्वनिना तत्पूर्ववचरित्रं जगौ ___ गगनांगणचुबिनि नीलाचलोत्तुंग,गे कश्चिदेको महामुनिलब्धस्वकीयानुपमझानौषधीगणनिरस्तपूर्वानुलितानेकसांसारिकविमवनपारदोत्करो निजस्वांतोरकुंडप्रकटिननानाविधतपोऽनलज्वाला For Private And Personal Use Only

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