Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 59
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशी-विषादं मा कुरु? जिनोक्तवरवचनाचरणोरुस्पंदनारूढस्त्वं पथि नरकाधिकारिपरमाद्यार्मिकश्वापदपरि. चरित्रं वोरैरपरिव्यमानः, कषायोत्कटझुटाकपेटकैरनुपछुतः, विविधधर्मोस्तुरंगमाभ्यामाकृष्यमाणः, धर्मध्या नोरशंबलपरिपुष्यमाणः, मार्गश्रमापनोदाथै स्वर्गादिरम्यभोगोपचितावस्थानेषु निवास कुन्,ि थनगारोपदिष्टधर्मोपदेशामृतपानेन संसारदाहोद्भुतपिपासां पराकुधन मोदमार्गसन्मुखी व्य क्रमेण सिकशिलाख्यं कमनीयं महापुरं प्राप्य चिरोत्कंठिताया अतिरम्यमुक्तिरमाया अविनश्वरं पाणिग्रहणं करिष्यसि. एवं मुनिवस्वचस्तुतिसुधोरुधाराघरधोरण्यपास्तहृदयसंतापः प्रदेशिनुपालो विनयेन गण. धरै प्रणम्योवात्र, हे स्वामिन् ! भवदुक्तो जिनधर्मोऽयं मह्यं रोचते, मिथ्यात्वांधकारांधिते मम ने. नवदीयोपदेशांजनेनाद्योद्घटिते. अथ प्रातरहं रोलंब व पुनरत्रागत्य नवचरणारनिंदं च नि षेव्य श्राव्रतमकरंदै गृहीत्वा निजात्मानममंदानंदमनं करिष्ये. ___ इति नृपोक्तं श्रुत्वा गणधरेंद्रोऽवादीत, हे राजन् ! धर्माचरणविधाने प्रमादं माकार्षीः. अथ म. नस्यतीवमुदितो राजा चित्रसारथियुतो गणधरेंडं नावेन नमस्कृत्य रथाधिरूढो निजावासे समाग तः, ततो नृपश्चित्रसारथिंप्रत्युवाच. नो मित्र! अद्य तव सहायेन मया सुगुरुदर्शनं प्राप्य संसारसा. For Private And Personal Use Only

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