Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 58
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रदेशी सदैव दारिद्यातिथी नृतो महाक्लेशपरंपरामाजीवितं सहमानो दुर्थ्यानपरो मृत्वा दुर्गतिं जगाम. श्रतो || चरित्रं जो राजंस्त्वमपि स लोहगारवाही मृढपुरुष व दुर्गतिप्रदमिथ्यात्वोपेतवंशपरंपरागतनास्तिकधर्मपरित्यागे लगानिबंधनमाविष्कुर्वन पश्चात्तापं माकार्षीः ? अथ गणघरोक्तां वाचं निशम्येकालपर्यंत स्वकृतमहाघोरपापोत्करातिजीत श कंपमानांगोपांगः प्रदेशिनुपातः कथमपि समुदाय ललाटपट्ट. बझांजलिपुटः प्रस्खलदचनं जगाद. हे जगवन् ! मृगयादिदुर्व्यसनाविष्टहृदयेन मया नूनमियंतं का. लमनेकानि पापाचरणान्याचीर्णानि. अथानाधुनैवाहं मम तत्पापाचरणोग्रफलप्रदानोत्सुकनरकाधि. कारिपरमाधामिरतावकदथ्यमानामव में हृदयं नयन कंपते, नेत्रपितमःस्तोमाबादिते व दिग्भ्रमं सूचयतः, पादावपि निविडायोनिगडनिगडिताविव पदमपि गंतुं न प्रजवतः. अयतमम त्वमेव शरणं, श्रगण्यपुण्यशरण्यस्त्वमेव नवपंकनिमग्नं मां धौरेय श्योर्तुं समर्थः, धनादिवरता णगणालंकृतवचरणप्रवहणमेव संसारार्णवे ब्रुमंतं मां तारयितुं समर्थ भविष्यति. हिंसाग्रुपेतमि | थ्यात्वधर्माचरणेन भाविनरकनयमीतं मां रदारदा? अथैवं नरकोपोरगविषभयनीतं कंपमानांगोपांगं च प्रदेशिनुपालं विज्ञाय गणधरेंडो मणिमंत्रसन्निनवचनस्तमाश्वासयामास, जो भूपात! अथवं For Private And Personal Use Only

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