Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 55
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५४ प्रदेशी-|| या मुद्रितकुंभगतपारापतकलेवरेऽपि कृमिसमुत्पत्तियिा. पुन पो जगौ नो संयमी ! एकदा मौ. चरित्रं को मनुष्यघाती पुरुषः परीदार्थ तोलितः, ततः श्वासरोधेन मारितः स एव पुरुषो मया तोलितः, परं तस्य देहतोलनप्रमाणं तुन न्यूनाधिकमत. असोऽहं मन्ये देहाद्भिन्नः कोऽपि जीवो नास्ति. मुनींद्र नवाच, जो नृमींद्र ! यथा वायुरहिता वायुसंयुना च तोलिता दृति! न्यूनाधिकप्रमाणानवति, तथा जीवरहितो जीवयुतश्चापि देहस्तोलितो न न्यूनाधिकप्रमाणो जायते. पुनरपि नृप उ. वाच हे भगवन् ! जवदुक्तमेतत्सर्वमपि मम सत्यं प्रतिजासते, परमस्ति स कोऽप्युपायः? येनाहं जी. वं प्रत्यदं नयनान्यां वीक्षे. मुनींद्र नवाच जो मेदिनीपते ! अस्य कंपमानतृणगणस्य प्रेरको वायु: डातोऽपि यथास्माकं चर्मचकुषां नोनयनपथमायाति, तथायं जीवोऽपि रूपरहितत्वादस्मादृशां चर्मचकुषां नो नयनगोचरीभवति, केवलं केवलझानवतां दिव्यचक्षुषामेव स दृष्टिपथमायाति. अथवमपास्तसकलसंदेहः प्रदेशिनुपालो हृदयोदितविवेकजानुप्रबलमनापप्रभाभरागतमिथ्यात्वांधकारः सहसोबाय गणधरेडं च त्रिःप्रदक्षिणीकृत्य पंचांगपातं प्रणम्य ललाटवघांजलिर्जगो, हे स्वामिन् ! कषायादिलोलकल्लोलकदंवकव्याकुलेऽस्मिन संसारापारपारावारे स्वात्मसत्यस्वरूपबंटनकप For Private And Personal Use Only

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