Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३१ प्रदेशी- अय परोपकृतिकर्मठो गणधरेंडोऽपि विशेषतश्चित्रसारथिमुद्दिश्य रिजवज्रमणोत्पन्नामितश्रमसंताप-1 चरित्रं संतप्तहृदयानां नव्यगणानां शांतिकृते धर्मोपदेशामृतधाराधरधोरणिं ववर्ष.-जिनेंद्रधर्मः शिवसौख्यहेतु-रुत्कृष्टसंवेगगुणेन रम्यः ॥ निजात्मजावस्य विधायकश्च ! निःसंगमुक्तेरपि दायकोऽस्ति ॥१॥ संवेगवोधोद्भवतत्वरूपो । मुनीशवगैश्च निषेव्यमाणः ॥ दात्याजवप्रभृतिनेदभिन्नः । सुसाधुधर्मो ग दितो जिनेंः ॥ ५॥ देशेन षट्कायसुरक्षणात्म-दयाप्रधानो गदितो जिनेंः ॥ सुश्राधर्मः खःसौख्य हेतुः । सम्यक्त्वमूलो विनयात्मकश्च ॥ ३ ॥ तत्र साधुधर्म एव प्रांतेऽपास्तजन्मजरारोगमरणमुक्तिप्रमदासंगानिलाषवतां वाचंयमानां परमापवर्गसंसाधकोऽस्ति. ते वाचंयमाश्च दमासिवर्गेण निपातितक्रोधोत्कटसुभटाः, मार्दवनिशितांकुशकदंबकेन वशीकृतमानोन्मत्तगजेंद्राः, आर्जवोग्रकुठारो करेण समूलं विदारितमायाविषवल्लयः, त्यागोरुवबजेन विपाटितलोभगिरयः, नानाविधसूर्यातपा| तिशायितपोविधानेन विनिर्दग्धकमधनोत्कराः, सप्तदश विधसंयमाराधननिविमायः,खलाश्रेणिनिर्नि बद्रियादिवाजिवर्गाः, सत्योरुसूर्यतेजसांधीकृतासत्यनिशाटनपाटचराः, शौचधर्मोरुनिर्मलसलिलसारणीधोरणीनिः प्रदालिताहारादिदोषकश्मलाः, समस्तत्यागात्मकधर्मवप्राश्रयेण विफलीकृतपरानवा For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147