Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 27
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरित्रं प्रदेशी ॥ अथ हितीयः सर्गः प्रारज्यते ॥ लवणाब्धिीचिनिचयप्रदालिताखिलकश्मले बृहीपे दाक्षिणात्ये चारते क्षेत्रे मध्यखंडे के | कयाख्यदेशे लक्ष्मीलीलालंकता त्रुमिमंडलनुषणीता निजसमृधिनिर्जितामरवरनगरी श्वेतांधिकाख्या नगरी वर्तते. तत्पुरीशानदिग्विनागे पुष्पपत्रप्रवालफलाव्यलंकृतजंबूजवीरनारंगतालतमालर. सालाधनेकपादपप्रकरघटा विघटितचंडमार्तडोगकिरणकदंबकावकाश, घनतरुस्तोमारुडायाश्रितानेक सारंगसरनवृषनादिजंतुजातदत्ताशीर्वादं, नानाविधपक्कफलास्वादाभिलापलब्धातिप्रमोदानेकशुकका ककोकिलादिपतत्रिकृतनिवासं, परस्परमिलितमहत्तरुशाखावितपर्णसीवकवृंदालिप्रकटितांधकारेण दिवापि निःशंकमितस्ततोत्रमद्धृककदंबककृतघू कारध्वनिभयंकरं मृगवनाभिधमुद्यानं वर्तते. तत्र न. गर्या मृगयाव्यसनातीवासक्तोऽधर्मपरश्चांडाल श्वानेकजीववधतत्परः, क्रूरदृष्टिविविधकरादानात्यंतपी डितप्रजः, कूटमायैकमंदिरं, परस्त्रीगमनासक्तहृदयः, कृतघ्नः, परडोहपातकाजीरः, श्याद्यानेकदुर्गुण गणोपेतः प्रदेशीत्याख्यो नृपतिरासीत्. सोऽहर्निशं पूर्वोक्तमृगवने गत्वानेकानायमृगयूयानि कर्णाकृष्टधनुर्मुक्तानेकशरत्रातर्निहंतिस्म. तस्य नृपस्यातीवरम्यरूपापास्तदेवांगनांगसौंदर्या, कमलकोमल For Private And Personal Use Only

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