Book Title: Pradeshi Charitram
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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प्रदेशी- संदीपनं । स्त्रीणां मन्मथमोहनं श्रमहरं स्नाने दशैते गुणाः ॥ १॥ ततो जुक्तमनोहरचतुर्विधाहार- । चरित्रं
श्चर्वितकर्पूरकस्तूरीवासितसुरभितांबलो महर्यवसनानूषणषितशरीरः परिहिनातिदृढसन्नाहः पृष्टव छतणीरः शरासनशरवातव्यग्रपाणिपंकजः स चित्रसारथिनूपदत्तहारोपहार गृहीत्वा विविधास्त्रश्रेणिबंधुरसुनटोत्करपरिवृतं स्वकीयं चतुर्घयनिधानं पंचवर्णपताकाभिमंडितं स्पंदनमारुह्य श्वेतांविकामध्यमार्गानिःसृत्य क्रमेण पथि नानाकौतुकानि विलोकयन कुणालजनपदस्थसावत्थीपुरोपांते संप्राप्तः. तत्र बाह्योद्याने स्पंदनं संस्थाप्य गृहीतहारोपहारोऽसौ सामंतसचिवाद्यनेकराजन्यराजिविराजितायां जितशत्रुसंसदि समाययो. तत्र रत्नजटितकार्तस्वररम्यसिंहासनसंस्थितं कनकाचतोत्तुंगशिखरस्थना स्करविंधमिव निजवदनतेजोराशिविनासितसकलभामंडपं जितशवु नृपं प्रणम्य स्वस्वामिप्रदेशिनृपप्रेषितं रम्यमणिमुक्ताहारोपहारं चित्रसारथिस्तस्याग्रे मुमोच. तदा जितशत्रुनृपोऽपि स्वसुहृदुत्तमप्रदे. शिनृपस्य कुशलोदंतं पृष्ट्वातीवप्रमोदभरपुलकितांगो हारं गृहीत्वा तस्मै चित्रसारथये रिसन्मानं ददौ. ततोऽसौ स्नाननोजनादिसकलसामग्रीसंयुते, रम्योद्यानपरिवृते, जलयंत्राद्यनेकक्रीडास्थानालं. कृते, परितो गवादगणपरिमंमिते नृपदत्तावासे मनोहरनृत्यादि प्रेदयन् सुखेन संत थो. शश्च श्री.
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