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(३९) ज्ञानी ज्यान समाधि पामे, वर्ते शुद्धातम तानेरे;ज्ञानण ॥४॥ ज्ञानीनो जे वनय न सेवे, तेने छे अतिचाररे; ज्ञानीनी आशातना टाळो, सफळ करो अवताररे. ज्ञान० ॥ ५॥ जानु आगळ तम नहि रहेतुं, ज्ञानी आगळ अज्ञानरे; ज्ञानी घटमा दोष रहे नहीं, ज्ञान स्वतंत्र प्रमाणरे. ज्ञान ॥६॥ ज्ञानथी चारित्र प्रगटे साधु, ज्ञान छे श्रेष्ठ पवित्ररे; स्वपर प्रकाशक ज्ञान डे सुंदर, तेथी वशमां ले चित्तरे. ज्ञान० ॥७॥ ज्ञानीनी याज्ञाए हलाहल, पीतां मुक्ति थातीरे; अज्ञानी वचने अमृतने, पीतां न शांति सुहातीरे. ज्ञान० ॥८॥ पिंडस्थादिक ध्यानने ध्यावे, धर्म शुकल बे ध्यावेरे; ज्ञानी ध्याननी सूक्ष्म क्रियाथी, क्षणमा मुक्ति पावरे. ज्ञान ॥ए॥ ज्ञाननी दासी सर्व क्रिया बे, ज्ञानी पासे किरियारे; ज्ञाने जगमां अनंत नव्यो, भवसागरने तरियारे. ज्ञान ॥ १० ॥ असंख्य योग छे मुक्तिना हेतु, ज्ञानयोग सहु मोटोरे; ज्ञानीनी सेवा नक्तिथी, रहे न कोई बोटोरे. ज्ञान० ॥ ११ ॥ झानीने पूजो ज्ञानी ने वंदो, ज्ञानी छे अप्रमादीरे;
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