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( ३२१ )
संघम स्थिरता संपजे, ध्यानथी केवल ज्ञान. ॥ १ ॥ ध्याननो भेद समाधि छे, मति श्रुतज्ञाने ध्यान; साकारी उपयोगथी, अंतर्मुहूर्त प्रमाण ॥ २ ॥ आतम आदि तमां, उपयोगे एकतान; अंतर्मुहूर्त ध्यान बे, ध्यान प्रवाह बहु मान. ॥ ३ ॥ आर्तरौद्र बे परिहरी, धर्म शुक्ल वे ध्यान; ध्याइए उपयोगथी, जीव बने भगवान् ॥ ४ ॥
हे सुखकारी आ संसारथकी जो मुजने उद्धरे.
ए राग.
महावीर प्रभु तुज ध्याने लय लागी बीजुं नह्रीं मे; हें ध्यान धर्यु बार वर्ष लगी तेमां मुज आतम रमे, रहें ध्याने केवल प्रगटाव्युं; मुज मनमां ध्यान ते शुभ भाव्युं, ध्याने प्रगटे सुख समजायुं. महावीर ॥ १ ॥ वायु व दीप शिखापरे, खातम ध्याने आनंद ल्हेरे; रहेवुं शुद्धातम निज च्हेरे. म.
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