Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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(३६३) रसियो, थातां प्रगटी खुमारी; कोटि प्रयत्नो कोइ करे पण, उतरे नहि ते उतारी. प्रभु तुज थानंद रस बलिहारी. ॥ २॥ तुज रस पामे विषयरस छूटे, मनडुं ठरे निर्धारी; सेवा भक्ति आतमज्ञाने, तुज रस मळतो भारी. प्रभु० ॥३॥ कोटि उपाय करे जन कोइ, सत्यानन्दने माटे; पण जड जगथो न आनंद पामे, आनंद छे तुज हाटे. प्रभु० ॥४॥ अमत आस्वाद्या पाविषना-पाननो प्रेम न जागे: एकवार तुज रसने पामे, मन न रहे जडरागे. प्रभु ॥५॥क्षयोपशम आतम रस पामी, क्षायिक आनंद माटे; सहेजे तुजमा मन रंगायुं, माल छे शिरने साटे. प्रभु०॥६॥ आनंदरस नैवेदो पूजु, बाह्य नैवेद्यथी पूजु; बुद्धिसागर महावीर पामी, बीजे क्यांये न मुंकु. प्रभु ॥७॥ * प० महावीर जिनेन्द्राय-नैवेद्यं यजामहे स्वाहा॥
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