Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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( ३६२ ) विकल्पे, ध्यान दशा छे विचारी; बुद्धिसागर शुद्ध उपयोगे, महावोर जग जयकारी महावोर० ॥ ५ ॥
सप्तमी नैवेद्यपूजा.
बाह्यांतर तुज रूपने, जाणे भक्त गणाय; तुज पर श्रद्धा धारतां, मुज मन निर्मल थाय ॥१॥ चौद भुवनमां व्याथड्यो, पड्युं न क्यांये वेन; पण तुजमां मन धारतां, प्रगट । सुखनी घेंन ॥ २ ॥ वर्धमान महावीर तुं, एक खरो आधार; तुजपर स्वार्पण सहु कर्यु; तुज शरणं सुखकार. ॥ ३ ॥
नाथ कैसे गजको बंध तुमायो ए राग.
प्रभु तुज आनंदरस बलिहारो, तीर्थंकर अवतारी. प्रभु० अनंत भवमां ठाम न ठरियो, दुःख लह्यो बहु भारी; बाहिरजड रसथी रंगायो, तृप्ति थई न लगारी. प्रभु० ॥ १ ॥ परमातम तुज यानंद
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