Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 397
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ३६४ ) अष्टमी फलपूजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir महावीरमां मन घरी, चालतां व्यवहार; सक्ति व यातमा, प्रभुपद पामे सार ॥ १ ॥ बाह्यांतर अतिशयी प्रभु, महावीर जिन परखाय; श्रद्धा प्रीति स्वार्पणे, मुक्ति ते याय. ॥२॥ प्रभु महावीर तुं धणी, सर्व विश्वनो देव; निष्कामे दिलमां घर, करुं ताहारी सेव ॥ ३ ॥ राम सारंग. प्रभु निर्मल दर्शन को जो ए. ए राग. प्रभु वीर !!! थयो तुज रागियो, आत्मज्ञाने जागियो. प्रभु० इन्द्रादिक पद सुख नहीं इच्छु, तुज स्वरूपे लागियो; भव मुक्तिमां समवृत्ति थे, नहि त्यागी वैरागियो. प्रभु० ॥ १ ॥ जम जगमां त्याग ग्रहणनी वृत्ति, टळतां थयो सौनागियो; बुद्धिसागर प्रभु महावीर, परमानंद फल चाखियो. प्रभु० ॥२॥ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417