Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 398
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३६५) विनतिपणे हुं विनवं, घेर आवोने ढोला. ए राग. क्षयोपशम उपशम फले, प्रभु पूज्या स्वभावे; निमित्त साधन साधना, साधुं प्रोतिजावे. क्षयोपशम० ॥ ३॥ प्रभु पूजन फल ज्ञानने, आनंद रस लीधुं, प्रभु रीझे जग खीजमां, लेश चित्त न दीधुं. क्षयोपशम० ॥ ४ ॥ बाकी क्षायिक भावथी, पूजन फल रहियु; शुद्धातम तुज रंगमां, मुज मन गहगहियु. क्षयोपशम ॥५॥ उत्पत्ति व्यय ध्रौव्यथी, सर्व द्रव्य प्रमाएयां; सम्यग् दृष्टि योगथी, तुज वचनो जाएयां. क्षयोपशम०॥ ६॥ देव गुरुने धर्मनी, भक्ति,-व्यवहारे; रहियो प्रभु तुज आणथी, उपयोग विचारे. क्षयोपशम ॥७॥ साविक आदि मोहना, पडदामा रहेलो; बुद्धिसागर आतमा, देखी मळियो मेळो. क्षयोपशम ॥८॥ For Private And Personal Use Only

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