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(३८२) सर्वमाही ने सर्वथी प्रभो न्यारा, सदसद् गुण प. र्यायाधारा; वीतरागने सर्वज्ञ प्यारा, सर्वदेवना देव. जय० ॥ ८॥ परमब्रह्म महावीरजी जगत्राता, तुहि माता पिता ने ब्राता; बुद्धिसागर यो सुख शाता, संघ मंगल माल. जय० ॥९॥
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