Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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( ३६१ )
सहज बे, जाणी गुणगण बेश प्रभु महावीर पूजत, रहे न मिथ्याकुलेश. ॥ ३॥
राग. आशावरी ॥
महावीर अकलकला प्रभु त्हारी, सर्व विश्वना परमेश्वर छो. सकल जगत् उपकारी महावीर० ॥ पृथ्वी थाळी भानु शशी बे, आरती मंगल भारी; महा मेघनां वाजां वागे, विजळी महिमा भारी. महावीर० ॥ १ ॥ वेदो आगमो महिमा गावे, ऋषियो ध्याइ गयारी; व्याप्यने व्यापक सद्सद्रूप, गुणपर्याय मयारी. महावीर० ॥ ॥ २ ॥ सद्गुणरूप के पंच महाभूत, ज्ञाने शोभी रह्यारी; अनंत गुण गणना तमे दरिया, या विजवे रह्यारी. महावीर० ॥ ३ ॥ चारगति चूरक स्वस्तिकने, रत्नत्रयी पुंज धारी; सिद्ध शिला सिद्ध चिह्न करीने, पूजूं भाव वधारो० ॥ ४ ॥ नयनिक्षेपा भंग
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