Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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( ३५७ )
गुण आधार; एक आधार प्रभु तुंहिरे, आनंदमय निर्धार. प्रभु० ॥ ५ ॥ सेवा आदि गुणमयीरे, साविक पुष्पनी माल; प्रभु महावीर कंठमारे, स्थापंता कल्याण. प्रभु० ॥ ६ ॥ तुज स्वरूप थइ तुज जुरे, चढता जावोल्लास; बुद्धिसागर आतमारे, आनंद अनुभव खास. प्रभु० ॥ ७ ॥
ॐ प० महावीर जिनेन्द्राय पु० य० स्वाहा ॥
चतुर्थी धूप पूजा.
देव गुरुने धर्मनी, श्रद्धा समकित खास; गुरु पासे समकित ग्रही, टाळो मिथ्यावास ॥ १ ॥ खेद भीति ने द्वेष वण, प्रजुने पूजे भक्त; देहादि जडसंगी पण, मन नहि जम नामना जापनो-धूप करी नरनार, प्रभुने पूजे प्रेमथी, कर्म टळे निर्धार ॥ ३ ॥
सक्त. ॥ २ ॥ प्रभु
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