Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal

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Page 391
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३५८) एं गुण वीरतणो न विसारु, संगारु दिन रातरे. ए राग. ॐ अर्ह महावीर जिनेश्वर, जाप जपुं दिन रा. तरे; प्रभु वण बीजुं कांइ न इच्छं, मात पिता तुं जातरे. ॐ अहँ ॥१॥ परापश्यंती मध्यामा वैखरी, जापे टळे सहु पापरे; राग द्वेष न पासे आवे, जाप जपंतां अमापरे. ॐ अर्ह० ॥२॥ ज्यां त्यां अंतर बाहिर धारणा, त्राटक तुज उपयोगरे; जीभ न हाले मानस जापे, प्रगटे आनंद जोगरे. ॐ अर्ह ॥३॥ जड चेतन सहु विश्वमा प्रभुनी, सत्ता धारणायोगरे, आत्ममहावीरसत्ता प्रगटे, थातो कर्म वियोगरे. ॐ अर्ह० ॥४॥ प्रभु तुज जापना धूपथी नासे, दु. बुद्धि दुर्गधरे; क्षण क्षण आतम शुद्धि वृद्धि, आ. तम थाय अबंधरे. ॐ अई ॥ ५॥ प्रभु जापे प्रभु घटमां प्रकाश्या, प्रगटो सुखनी खुमारोरे; बुद्धिसागर महावीर लगनो,प्रगटीन उतरे उतारीरे.ॐ अई॥६॥ ॐ प० महावीर जिनेन्द्राय-धूपं यजामहे स्वाहा ॥ For Private And Personal Use Only

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