Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
( ३५३ )
यो हळियो, लेजो झट उद्धारीरे. महावीर० ॥ २ ॥ तत्त्वमसि सोऽहं ने ओऽहं, एकता लोनता धारी; भूल्यो जडमाया तुज भाने, तुजपर जउ सहु वारी रे. महावीर० ॥ ३ ॥ प्रभु तुज रोझनी यागळ जगनो, खीज गणुं न लगारी; ज्यां देखूं त्यां तुंहि तुंहि तुहि, प्रगती धून भारीरे. महावीर० ॥ ४ ॥ लक्ष्मी सत्ताथी न पमातो, निराकार निर्धारी; श्रद्धा प्रीति उपयोगे प्रभु, मळतो तुं सुखकारीरे. महावीर० ॥ ५ ॥ श्रद्धा प्रीति जल पूजाथी, पूजुं जग हितकारी; ज्ञानानन्द जे अंशे प्रगटे, पूजाफल निर्धारीरे. महावीर० ॥ ६ ॥ जगनो माया मन पमछाया, मुंकुं नहीं त्यां लगारी; बुद्धिसागर प्रभुमहावीर, लेजो हवेतो उगारीरे. महावीर० ॥ ७ ॥
ॐ ह्रीं श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरा मृत्यु निवारणाय, श्रीमते महावीर जिनेन्द्राय, जलं यजामहे स्वाहा ॥
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417