Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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(३५१) ॥ प्रभु महावोर तीर्थकर देवनी अष्ट
प्रकारी पूजा ॥ परब्रह्म परमातमा, चोवीशमा जिनराज; वि. श्वपति जिनपति विभु, सारो वंबित काज. ॥१॥ प्रणमुं महावीर जगपति, जिन शासन सुल्तान; अष्ट प्रकारे द्रव्यथी, प्रजुं तुज जगवान् ॥ २॥ म. नवच कायाथी कर्यु, प्रनु तुज शरणुं बेश; अर्पयो तुजमा प्रभु, जाग्यो असंख्य प्रदेश. ॥ ३ ॥ जडथी प्रीति टाळोने, धारी तुजपर प्रोत; तुजपर श्रद्धा धारतां, रही न नोति अनीति. ॥४॥ परोक्ष मति श्रुत ज्ञानथी, परोक्ष तुं परखाय; केवलज्ञाने तुं प्रभु, प्रत्यक्ष घट पेखाय. ॥ ५॥ तुज आगमना अनुनवे, अनुभव्यो जिनदेव; द्रव्यभाव पूजा रचो, करूं तुजरूपनो सेव. ॥ ६॥ अनंत गुण पर्यायनो, शुफि करवा काज; निज आतम तुज साथमा, योज्यो करो सनाथ. ॥७॥ तुज गुण
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