Book Title: Pooja Sangraha Part 2
Author(s): Buddhisagar
Publisher: Adhyatma Gyan Prasarak Mandal
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(३४६) शुक्ल परिणामना धारी, कामी उतां जे अकामोरे; सम्यग्दृष्टियोगे सवळ, जाणे न धारे खामीरे. सांग ॥४॥ पुण्य भोग जोगवता विचरे, मुक्ति सुख अभिलाषीरे; सघरों आयुष्य पूरण करता, शुद्धातम विश्वासीरे. सांग ॥५॥ अनंत निर्जरे अल्पकर्मबंध, सम्यग्दृष्टि योगेरे; बाह्यथकी देवजवना सुखने, भोगवे उदयप्रयोगेरे. सां० ॥६॥ तीर्थकर पद बांध्यु जाणे, भावी जन्मने जाणेरे; एक समये चवतां नहि जाणे, उपयोग मुहूर्त प्रमाणेरे. सां० ॥७॥ शिव मारग विसामो सुरभव, वोरप्रभुनो जाणोरे; बुद्धिसागर प्रमुगुणभक्ते, जन्म सफल थयो मानोरे. सां०॥८॥ ___ॐ ह्रीं श्री परम पुरुषाय, परमेश्वराय, जन्म जरा मृत्यु निवारणाय, श्रीमते महावीर जिनेन्द्राय, भक्तिलाभाथे ज० यण स्वाहा ॥
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