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(३१५) र्धार. योगने धारोजी; प्रथम गुरु देव सेव, धरीए याचारोजी. ॥ १॥ ओघे देव गुरु वृद्ध सेवा, पूजन थाय सुरागजो, सदाचार प्रवृत्ति प्रगटे, तपनी वृत्ति त्याग. योगने. ॥ २ ॥ उपकारीनी सेवा थावे, प्रभु दर्शन गुणरागजी; चारिसंजीवन दृष्टांते, धर्म कर्म वैराग्य. योगने. ॥ ३ ॥ देव गुरुनी निन्दा न थाती, थाय सुपात्रे दानजी; परोपकार प्रवृत्ति थावे, गुण
तान. योग. ॥ ४ ॥ प्रभुता पामे गर्व न थातो, सत्य पथ्य हित बोलजी; सत्य तत्वनी हा प्रगटे, सत्यासत्यनो तोल. योग. ॥५॥ साधु संतनी सेवा भक्ति, रुचे धर्मोपदेशजी; मार्गानुसारी नीतिरीत, मुक्तिपर नही द्वेष. योग. ॥ ६ ॥ प्रमा.. णिक व्यवहार प्रवृत्ति, सत्यप्रतिज्ञा पळायजी; चोरी व्यभिचार व्यसन निवृत्ति, कुलाचार वर्ताय. योग. ॥७॥ मांस मदिरा त्यागने सजन,-रीतिनो व्यवहारजी; मात पिता गुरु वर्गनी आज्ञा, ऐवो सदाचार धार, योगने. ॥८॥ नास्तिक दुष्टनी संग
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