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( २३६ )
देव अरिहंत जाणीए, दोषरहीत अढार; गुरु सुसाधु महाव्रती, पाळे पंचाचार ॥ २ ॥ जिनवरभापित सत्य छे, जैनधर्म जगजोय; सुख दुःख होवे कर्मथी, अवर न कर्ता कोय. ॥ ३ ॥
( निहारे न्हवण करो जिनराजने रे - ए देशी. )
निहारे वास्तुकपूजा शुभ कीजीऐरे, तजी अवर देवनी आश; सत्पात्रे दानने दीजी ऐरे, सूत्रश्रवणरुचि का जिलाष, श्री संखेश्वर प्रभु पासजीरे. ॥ १ ॥ भवी जावे द्रव्यार्थिकमये करीरे, शाश्वत बे लोकालोक, कर्ता तेहनो को नहिरे, केम कर्ता मानीऐ फोक. श्री संखे. ॥२॥ उंचो नीचो एवा तीरबा लोकनीरे, स्थिति बे अनादिअनंत; कर्ता तेहनो को नहींरे, एम जाखे श्री भगवंत श्री संखे. ॥३॥ नवतत्त्व षकद्रव्य छे नित्य शाश्वतारे, द्रव्य गुणपर्यायस्वरूप, बेनेदे जीव दाखियारे, तस लक्षण छे चिद्रूप. श्री संखे ॥ ४ ॥ परिणामी पुद्गल जीव दो जाणी एरे, अनादि संबंध विचार; कर्ता कर्मनो
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