Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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[५] संबन्ध आध्यात्मिक विकाससे है । अत एव यह स्पष्ट है कि योगका अस्तित्व सभी देश और सभी जातियों में रहा है। तथापि कोइ भी विचारशील मनुष्य इस वातका इनकार नहीं कर सकता है कि योगके आविष्कारका या योगको पराकाष्ठा तक पहुंचानेका श्रेय भारतवर्ष और आर्यजातिको ही है। इसके सबूतमें मुख्यतया तीन बातें पेश की जा सकती हैं। १ योगी ज्ञानी, तपस्वी आदि आध्यात्मिक महापुरुषोंकी बहुलताः २ साहित्यके आदर्शकी एकरूपता; ३ लोकरुचि।
१ योगी, ज्ञानी, तपस्वी आदि आध्यात्मिक महापुरुषोंकी बहुलता-पहिलेसे आज तक भारतवर्षमें आध्यात्मिक व्यक्तियोंकी संख्या इतनी बडी रही है कि उसके सामने अन्य सब देश और जातियोंके आध्यात्मिक व्यक्तियोंकी कुल संख्या इतनी अल्प जान पडती है जितनी कि गंगाके सामने एक छोटीसी नदी।
२ साहित्यके आदर्शकी एकरूपता-तत्त्वज्ञान, आचार, इतिहास, काव्य, नाटक आदि साहित्यका कोइ भी भाग लीजिये उसका अन्तिम श्रादर्श बहुधा मोच ही होगा। प्राकृतिक दृश्य और कर्मकाण्डके वर्णनने वेदका बहुत बडा भाग रोका है सही, पर इसमें संदेह नहीं कि वह