Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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आचार्य अन्तमें चार प्रकार के योगियों का वर्णन करके योगशास्त्र के अधिकारी कौन हो सकते हैं ? यह भी वतला दिया है । यही योगदृष्टिसमुच्चयकी बहुत संक्षिप्त वस्तु है । । योगविंशिका में आध्यात्मिक विकासकी प्रारंभिक अवस्थाका वर्णन नहीं है, किन्तु उसकी पुष्ट अवस्थाओंका ही वर्णन है ।
इसीसे उसमें मुख्यतया योगके अधिकारी त्यागी ही माने गये हैं । प्रस्तुत ग्रन्थमें त्यागी गृहस्थ और साधुकी आवश्यक - क्रियाको ही योगरूप बतलाकर उसके द्वारा आध्यात्मिक विकासकी क्रमिक वृद्धिका वर्णन किया है । और उस आवश्यक-क्रियाके द्वारा योगको पाँच भूमिओं में विभाजित किया है । ये पाँच भूमिकायें उसमें स्थान, शब्द, अर्थ, सालवन और निरालंबन नामसे प्रसिद्ध हैं । इन पॉच भूमिकायों में कर्मयोग और ज्ञानयोगकी घटना करते हुए आचार्यने पहली दो भूमिकाओं को कर्मयोग और पिछली तीन भूमिकाको ज्ञानयोग कहा है। इसके सिवाय प्रत्येक भूमि - कामें इच्छा, वृत्ति, स्थैर्य और सिद्धिरूपसे आध्यात्मिक विकासके तरतम भावका प्रदर्शन कराया है। और उस प्रत्येक भूमिका तथा इच्छा, प्रवृत्ति यदि अवान्तर स्थितिका लक्षण बहुत स्पष्टतया वर्णन किया हैं । इस प्रकार उक्त १ योगविंशिका गा० ५, ६ ।