Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 237
________________ [ १३५ ] शास्त्रजनित संस्कारों के चलसे: जैसे कि चाकके घूमनेमें पहला घूमाव तो डंडेकी प्रेरणा से होता है और पिछेका सिर्फ दंडनित वेगसे। असङ्गानुष्ठानको अनालम्बन योग इसलिए कहा है कि - " संगको त्यागना ही अनालम्बन है " | योगके कुल अस्सी भेद बतलाये हैं सो इस प्रकार - स्थान, ऊ आदि पूर्वोक्त पाँच प्रकारके योगके इच्छा, प्रवृत्ति, स्थिरता और सिद्धि ऐसे चार चार भेद करने से बीस भेद हुए । इन बीसमें से हर एक भेद के प्रीति - अनुष्ठान, भक्तिअनुष्ठान, वचनानुष्ठान और प्रसङ्गानुष्ठान ये चार चार भेद होते है अतएव बीसको चारसे गुनने पर अस्सी भेद हुए || लम्बनके वर्णनके द्वारा नालंबन योगका स्वरूप दिखाते हैं गाथा १६-- आलम्बन भी रूपी और अरूपी इस तरह दो प्रकारका है । परम अर्थात् मुक्त आत्मा ही अरूपी आलम्बन है, उस रूपी आलम्बनके गुणोकी भावनारूप जो ध्यान है वह सूक्ष्म ( अतीन्द्रिय विषयक ) होनेसे अनालवन योग कहलाता है | म्वन ॥ खुलासा -- योगका ही दूसरा नाम ध्यान है । ध्यानके मुख्यतया दो भेद हैं, सालम्बन और निरालम्बन । आलम्बन ( ध्येय विषय ) मुख्यतया दो प्रकारका होनेसे ध्यान के उक्त दो भेद समझने चाहिए। श्रालम्बनके रूपी और

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