Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 227
________________ [ १२५] गाथा १३-जो देशविरतिपरिणामवाले हों वे चैत्यवन्दनके योग्य अधिकारी हैं। क्योंकि चैत्यवन्दनस्त्रमें " कायं वोसिरामि " इस शब्दसे जो कायोत्सर्ग करनेकी प्रतिज्ञा सुनी जाती है वह विरतिके परिणाम होनेपर ही घट सकती है। इसलिए यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि देशविरति परिणामवाले ही चैत्यवन्दनके योग्य अधिकारी हैं । खुलासा-चैत्यवन्दनके अंदर " ताव काय, ठाणेणं" इत्यादि पाठके द्वारा कायोत्सर्गकी प्रतिज्ञा की जाती है । कायोत्सर्ग यह कायगुप्तिरूप विरति है, इसलिए विरति परिणामके सिवाय चैत्यवंदन-अनुष्ठान करना अनधिकार. चेष्टामात्र है । देशविरतिवालेको चैत्यवन्दनका अधिकारी कहा है सो मध्यम अधिकारीका सूचनमात्र है। जैसे तराजूकी डण्डी वीचमें पकडनेसे उसके दोनों पलडे पकडमें आ जाते है वैसे ही मध्यम अधिकारीका कथन करनेसे नीचे और ऊपरके अधिकारी भी ध्यानमें आ जाते है। इसका फलित अर्थ यह है कि सर्वविरतिवाले मुनि तो चैत्यवन्दनके ताविक अधिकारी है और अपुनर्वधक या सम्यग्दृष्टि व्यवहारमात्रसे उसके अधिकारी है, परन्तु जो कमसे कम अपुनबंधक भावसे भी खाली है अतएव जो विधियमान करना नहीं जानते दे सर्वधा चैत्यवन्दनकै अनधिकारी हैं।

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