Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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[१२३] होनेपर भी उसकी तीव्र रुचि हो तो वह द्रव्याक्रिया अन्तमें भावक्रियाके द्वारा कभी न कभी मोक्षको देनेवाली मानी गई है, इसीसे वैसी क्रियाको तहेतु-अनुष्ठान और उपादेय कहा है ।। ___स्थान आदि योगोंके अभावमें चैत्यवंदन केवल निष्फल
ही नहीं बल्कि अनिष्टफलदायक होता है, इसलिए योग्य __ अधिकारीको ही वह सिखाना चाहिये ऐसा वर्णन करते हैं____ गाथा १२-जो व्यक्ति अर्थ, आलंबन इन दो योगोंसे शून्य होकर स्थान तथा वर्ण योगसे भी शून्य हैं उनका वह अनुष्ठान कायिक चेष्टामात्र अर्थात् निष्फल होता है अथवा मृपावादरूप होनेसे विपरीत फल देनेवाला होता है, इसलिए योग्य अधिकारिओंको ही चैत्यवन्दन सूत्र सिखाना चाहिये ।।
खुलासा-जो अनुष्ठान निष्फल या अनिष्टफलदायंक हो वह असदनुष्ठान है । इसके तीन प्रकार हैं, (१) अननुष्ठान (२) गरानुष्ठान (३) विषानुष्ठान । चैत्यवन्दनमें ही यह देख लेना चाहिये कि वह कब किस प्रकारके असदनुष्ठानका रूप धारण करता है ।
जिस चैत्यवन्दनक्रियामें न अर्थ, प्रालंबन योग है न उनकी रुचि है और न स्थान, वर्ण-योगका आदर ही है वह क्रिया संमृच्छिम जीवकी प्रवृत्तिकी तरह मानसिकउपयोगशून्य होनेके कारण निप्फल है; इसी निष्फल क्रियाको