Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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[११३] नित्यता अर्थात् परिवर्तनशील तत्त्व । इनमेंसे पहली नित्यता पुरुष (आत्मा ) में है और दूसरी प्रकृतिमें ।
इस पर जैन मतभेद दिखाते हुए वृत्तिकार कहते हैं किकूटस्थनित्यता माननेमें कोई सबूत नहीं। आत्मा हो या प्रकृति सभीमें परिणामिनित्यता ही है, अर्थात् वस्तुमात्रमें द्रव्यरूपसे नित्यता और पर्यायरूपसे अनित्यता युक्तिसंगत होनेके कारण सवका एकमात्र लक्षण " उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य" ऐसा ही करना चाहिये ।