Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal

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Page 219
________________ [ ११६ ] साधनों की कमी होनेपर भी ऐसा उल्लास प्रकट हो जिससे शास्त्रोक्त विधिके प्रति बहुमान पूर्वक अल्पमात्र योगाभ्यास किया जाय वह अवस्था इच्छायोग है । ( २ ) जिस अवस्थामें वीर्योल्लास की प्रबलता हो जानेसे शास्त्रानुसार सांगोपांग योगाभ्यास किया जाय वह प्रवृत्तियोग है । ( ३ ) प्रवृत्तियोग ही स्थिरतायोग है, पर अंतर दोनोंमें इतना ही है कि प्रवृत्तियोग में अतिचार अर्थात् दोषका डर रहता है और स्थिरतायोगमें डर नहीं रहता । ( ४ ) सिद्धियोग उस यवस्थाका नाम है जिसमें स्थानादि योग उसका याचरण करनेवाले आत्मामें तो शांति पैदा करे ही, पर उस श्रात्मा के संसर्ग में आनेवाले साधारण प्राणियों पर भी शांतिका असर डाले । सारांश यह है कि सिद्धियोगवा लेके संसर्गमें आनेवाले हिंसक प्राणी भी हिंसा करना छोड़ देते हैं और असत्यवादी भी सत्य बोलना छोड़ देते हैं अर्थात् उनके दोप शांत हो जाते हैं । - - उक्त इच्छा आदि योगभेदों के हेतुओं को कहते हैं गाथा ७ -- ये विविध प्रकारके इच्छा आदि योग प्रस्तुत स्थान आदि योगकी श्रद्धा, प्रीति श्रादिके सम्बन्धसे भव्य प्राणियों को तथाप्रकारके क्षयोपशमके कारण होते है || PA खुलासा - इच्छा आदि चारों योग आपसमें एक दुसरेसे भिन्न तो हैं ही, पर उन सबमेंसे एक एक योगके

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