Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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_ जैव दर्शनके साथ योगशास्त्रका सादृश्य तो अन्य सब दर्शनोंकी अपेक्षा अधिक ही देखनेमें आता है। यह बात स्पष्ट होनेपर भी बहुतोंको विदित ही नहीं है, इसका सबब यह है कि जैनदर्शनके खास अभ्यासी ऐसे बहुत कम हैं जो उदारता पूर्वक योगशास्त्रका अवलोकन करनेवाले हों, और योगशास्त्रके खास अभ्यासी भी ऐसे बहुत कम हैं जिन्होंने जैनदर्शनका बारीकीसे ठीक ठीक अवलोकन किया हो । इसलिये इस विषयका विशेष खुलासा करना यहाँ अप्रासङ्गिक न होगा। __ योगशास्त्र और जैनदर्शनका सादृश्य मुख्यतया तीन प्रकारका है । १ शब्दका, २ विपयका और ३ प्रक्रियाका ।
१ मूल योगसूत्रमें ही नहीं किन्तु उसके भाष्यतकमें ऐसे अनेक शब्द हैं जो जैनेतर दर्शनोंमें प्रसिद्ध नहीं हैं, या वहुत कम प्रसिद्ध हैं, किन्तु जैन शास्त्रमें खास प्रसिद्ध हैं। जैसे-भवप्रत्यय, सवितर्क सविचार निर्विचार, महाव्रत, कृत
१ "भवप्रत्ययो विदेहप्रकृतिलयानाम्" योगसू. १-१६ । " भवप्रत्ययो नारकदेवानाम् ” तत्त्वार्थ श्र. १-२२ ।
२ ध्यानविशेषरूप अर्थमें ही जैनशास्त्रमें ये शब्द इस प्रकार हैं " एकाश्रये सविव पूर्वे" ( तत्त्वार्थ अ. ९-४३)" वत्र