Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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[ १७ ज्ञान, श्रद्धा, उदारता. ब्रमचर्य आदे आध्यात्मिक उच्च मानसिक भावोंके चित्र भी बड़ी खूबीपाले मिलते हैं। इससे विविध प्रवृत्ति कर रहा है। मैं क्या कहूँ और क्या विचार करूं ?। ६ । अंधकारस्थित हे अग्नि को अंधकारसे भय पानेवाले देव नमस्कार करते है। वैश्वानर हमारा रक्षण करे । ममर्त्य हमारा रक्षण करे । ७ । पुरुषसूक्त मण्डल १० सू ६० ऋग्वेदः
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् । स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठदशाङ्गुलम् ॥ १॥ पुरुष एवेदं सर्व यद्भूतं यश्च भव्यम् । उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिगेहति ॥२॥ एतावानस्य महिमाऽतो ज्यायांश्च पूरुषः ।
पादोस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥ भाषांतर:-( जो) हजार सिरवाला, हजार प्रांखवाला, हजार पाववाला पुरुष (है) वह भूमिको चारों ओरसे घेर कर ( फिर भी ) दस अंगुल बढ़ कर रहा है। ११ पुरुष ही यह सब कुछ है-जो भूत और जो भावि । ( वह ) अमृतत्वका ईश अन्नसे बढ़ता है । २। इतनी इसकी महिमा-इससे भी
१ मं.१० सू.७१ ऋग्वेद । २ मं. १० सू०१५१ ऋग्वेद। मं. १० सू. ११७ ऋग्वेद । ४ मं. १० सू. १० ऋग्वेद ।