Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
View full book text
________________
[१५] प्रवर्तक ज्ञानका मुख्य विषय आत्माका अस्तित्व है। श्रात्साका स्वतन्त्र अस्तित्व माननेवालों में भी मुख्य दो मत हैं-पहला एकात्मवादी और दूसरा नानात्मवादी । नानात्मवादमें भी आत्माकी व्यापकता, अव्यापकता, परिणामिता, अपरिणामिता माननेवाले अनेक पक्ष हैं । पर इन वादोंको - एकतरफ रख कर मुख्य जो आत्माकी एकता और अनेकताके दो वाद हैं उनके आधार पर योगमार्गकी दो धारायें हो गई हैं। अत एव योगविषयक साहित्य भी दो मागों में विभक्त हो जाता है। कुछ उपनिषदें,' योगवाशिष्ठ, हठयोगप्रदीपिका आदि ग्रन्थ एकात्मवादको लक्ष्यमें रख कर रचे गये हैं। महाभारतगत योग प्रकरण, योगसूत्र तथा जैन और बौद्ध योगग्रन्थ नानात्मवादके आधार पर रचे गये हैं।
योग और उसके साहित्यके विकासका दिग्दर्शन--आर्यसाहित्यका भाण्डागार मुख्यतया तीन भागोंमें विभक्त है-वैदिक, जैन और बौद्ध । वैदिक साहित्यका प्राचीनतम ग्रन्थ ऋग्वेद है। उसमें आधिभौतिक और आधिदैविक वर्णन ही मुख्य है। तथापि उसमे प्राध्या
१ ब्रह्मविद्या, क्षुरिका, चूलिका, नादविन्दु, ब्रह्मबिन्दु, अमृतविन्दु, ध्यानदिन्दु, तेजोविन्दु, शिखा, योगतत्त्व, हंस..