Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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सूत्रमें महर्षि बादरायणने तो तीसरे अध्यायका नाम ही साधन अध्याय रक्खा है, और उसमें आसन ध्यान आदि योगांगोंका वर्णन किया है। योगदर्शन तो मुख्यतया योगविचारका ही ग्रन्थ ठहरा, अत एव उसमें सांगोपांग योगप्रक्रियाकी मीमांसाका पाया जाना सहज ही है। योगके स्वरूपके सम्बन्धमें मतभेद न होनेके कारण और उसके प्रतिपादनका उत्तरदायित्व खासकर योगदर्शनके उपर होनेके कारण अन्य दर्शनकारोंने अपने अपने सूत्र ग्रन्थों में थोडासा योगविचार करके विशेष जानकारीके लिये जिज्ञासुओंको योगदर्शन देखनेकी सूचना दे दी है। पूर्वमीमांसामें महर्षि जैमिनिने योगका निर्देश तक नहि किया है सो ठीक ही है, क्योंकि उसमें सकाम कर्मकाण्ड अर्थात् धूम-मार्गकी ही मीमांसा है। कर्मकाण्डकी पहुंच स्वर्गतक
३-३१ । धारणासनस्वकर्मणा तत्सिद्धिः ३-३२ । निरोध
चर्दिविधारणाभ्याम् ३-३३ । स्थिरसुखमासनम् ३-३४॥ १ आसीनः संभवात् ४-१-७ । ध्यानाच ४-१-८। अचलवं चापेक्ष्य ४-१-९। स्मरन्ति च ४-१-१० ।
यत्रैकाग्रता तत्राविशेषात् ४-१-११।। २ योगशास्त्राचाध्यात्मविधिः प्रतिपत्तव्यः । न्यायदर्शन
४-२-४६ भाप्य ।