Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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[२७] जब नदीमें बाढ आता है तब वह चारों ओरसे वहने लगती है। योगका यही हाल हुआ, और वह आसन, मुद्रा, प्राणायाम आदि बाह्य अंगोंमें प्रवाहित होने लगा। बाय अंगोंका भेद प्रभेद पूर्वक इतना अधिक वर्णन किया गया और उसपर इतना अधिक जोर दिया गया कि जिससे वह योगकी एक शाखा ही अलग बन गई, जो हठयोगके नामसे प्रसिद्ध है। ___ हठयोगके अनेक ग्रन्थोंमें हठयोगप्रदीपिका, शिवसंहिता, घेरण्डसंहिता, गोरक्षपद्धति, गोरक्षशतक आदि ग्रन्थ प्रसिद्ध हैं, जिनमें आसन, वन्ध, मुद्रा, पट्कर्म, कुंभक, रेचक, पूरक आदि वाह्य योगांगोंका पेट भर भरके वर्णन किया है, और घेरण्डने तो चौरासी आसनको चौरासी लाख तक पहुंचा दिया है।
उक्त हठयोगप्रधान ग्रन्थों में हठयोगप्रदीपिका ही मुख्य है, क्यों कि उसीका विपय अन्य ग्रन्थोंमें विस्तार रूपसे वर्णन किया गया है। योगविषयक साहित्यके जिज्ञासुओंको योगतारावली, विन्दुयोग, योगवीज और योगकल्पद्रुमका नाम भी भूलना न चाहिये । विक्रमकी सत्रहवी शताब्दीमें मैथिल पण्डित भवदेवद्वारा रचित योगनिवन्ध नामक हस्तलिखित ग्रन्थ भी देखनेमें आया है, जिसमें विष्णुपुराण
आदि अनेक ग्रन्थोके हवाले दे कर योगसम्बन्धी प्रत्येक विषय पर विस्तृत चर्चा की गई है।