Book Title: Patanjal Yogdarshan tatha Haribhadri Yogvinshika
Author(s): Sukhlal Sanghavi
Publisher: Atmanand Jain Pustak Pracharak Mandal
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[४०] और चोथेका कैवल्यपाद है । प्रथमपादमें मुख्यतया योगका स्वरूप, उसके उपाय और चित्तस्थिरताके उपायोंका वर्णन है । दूसरे पादमें क्रियायोग, आठ योगाङ्ग, उनके फल तथा चतुर्ग्रहका मुख्य वर्णन है ॥
तीसरे पादमें योगजन्य विभूतियोंके वर्णनकी प्रधानता है । और चोथे पादमें परिणामवादके स्थापन, विज्ञानवादके निराकरण तथा कैवल्य अवस्थाके स्वरूपका वर्णन मुख्य है । महर्षि पतञ्जलिने अपने योगशास्त्रकी नीव सांख्यसिद्धान्तपर डाली है। इसलिये उसके प्रत्येक पादके अन्तमें " योगशास्त्रे सांख्यप्रवचने” इत्यादि उल्लेख मिलता है । "सांख्यप्रवचने" इस विशेषणसे यह स्पष्ट ध्वनित होता है कि सांख्यके सिवाय अन्यदर्शनके सिद्धांतोंके आधारपर भी रचे हुए योगशास्त्र उस समय मौजुद थे या रचे जाते थे इस योगशास्त्रके ऊपर अनेक छोटे बडे टीका ग्रन्थ हैं, पर
१ हेय, हेयहेतु, हान, हानोपाय ये चतुर्ग्रह करलाते हैं। इनका वर्णन सूत्र १६-२६ तकमें है।
२ व्यास कृत भाष्य, वाचस्पतिकृत तत्त्ववैशारदी टीका, भोजदेवकृत राजमार्तड, नागोजीभट्ट कृत वृत्ति, विज्ञानभिक्षु कृत वार्तिक, योगचान्द्रका, मणिप्रभा, भावागणेशीय वृत्ति, बालरामोदासीन कृत टिप्पा आदि ।