Book Title: Parmatmaprakash
Author(s): Yogindudev, A N Upadhye
Publisher: Paramshrut Prabhavak Mandal

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Page 17
________________ १४ जोइंदु-विरइउ [145:२-१८_145) मुत्ति-विहूणउ णाणमउ परमाणंद-सहाउ । णिमि जोइय अप्पु मुणि णिच्चु णिरंजणु भाउ ॥१८॥ 146) पुग्गल छविहु मुत्त वढ इयर अमुत्तु वियाणि । धम्माधम्म वि गयठियहँ कारणु पभणहि णाणि ॥१९।। 147) दव्वइँ सयलई वरि ठियइँ णियमे जासु वसंति । तं णहु दव्वु वियाणि तुहुँ जिणवर एउ भणंति ॥२०॥ 148) कालु मुणिज्जहि दव्वु तुहुँ वट्टण-लक्खणु एउ। रयणहँ रासि विभिण्ण जिम तसु अणयह तह भेउ ॥२१॥ 149) जीउ वि पुग्गल काल जिय ए मेल्लेविण दव्व । इयर अखंड वियाणि तुहुँ अप्प-पएसहि सव्व ।।२२।। 150) दव्व चयारि वि इयर जिय गमणागमण-विहोण । ___जीउ वि पुग्गलु परिहरिवि पभणहिणाण-पवीण ।।२३।। 151) धम्माधम्मु वि एक्कु जिउ ए जि असंख-पदेस । गयणु अणंत-पएसु मुणि बहु-विह पुग्गल-देस ॥२४॥ 152) लोयागासु धरेवि जिय कहियई दव्वई जाइँ । एक्कहि मिलियई इत्थु जगि सगुणहिं णियसहि ताइँ ॥२५।। 153) एयइ दवइ देहियह णिय-णिय-कज्जु जणंति ।। चउ-गइ-दुक्ख सहत जिय ते संसारु भमंति ॥२६॥ 154) दुक्खहँ कारण मुणिवि जिय दववह एहु सहाउ । होयवि मोक्खहँ मन्गि लहु गम्मिज्जइ पर-लोउ ॥२७।। 155) णियमें कहियउ एह मई ववहारेण वि दिट्ठि । ___ एवहि णाणु चरित्तु सुणि जे पावहि परमेट्टि ॥१८॥ 145) TKM विहणिउ, णियमे. 146) TKM पोग्गल, धम्माहम्मु वि गइठिदिहि, A गइठिएहि; Ms. A has no commentary on 18-19, but the saune added in a different hand on the marginal space. 147) TKM change the order of 147 and 148; TKM दव्वइ सयलुदरिट्ठियई; Brahmadeva उवरि; BC णियमि; TKM एहु for एउ. 148) C वट्टणु; TKM एहु for एउ, जेव तसु अणुवह. 149) TKM पोग्गलु, अखंड मुणेहि तुहं. 150) TKM पोग्गलु. परिहरवि पभणइ णाणपवीणु, AB णाणिपवीण. 151) TKMBC धम्माहम्म; TKM एज्जि, गयण, पोग्गल'; Brahmadeva has another reading पुग्गल तिविहु पएसु. 152) TKMBC लोयायासु, TKM धरेइ ठिया, एत्थु जए. 153) TKM देहियहि, C देहियई; TKM णियणिउ, सहंतु BC सहति 154) TKM णादु for मुणिवि, एउ for एह, मग्गे; C होइवि. 155) B णियमई; TKM मुणि for सुणि; BC जि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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