Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः
२५ उदा०-मृतमितरमाण्डमवापद्यत (मै०सं० १।६।१२) वानमितरम् । सिद्धि-इतरम् । इतर+सु। इतर+अम्। इतरम् ।
यहां छन्द विषय में 'इतर' शब्द से स्वौजसः' (४।१।२) से 'सु' प्रत्यय है। इस सूत्र से सु' के स्थान में 'अम्' आगम का प्रतिषेध है। अत: अतोऽम् (७।१।२४) से 'सु' के स्थान में 'अम्' आदेश और 'अमि पूर्वः' (६।१ ।१०५) से पूर्वसवर्ण एकादेश (अ+अ=अ) होता है। ऐसे ही 'अम्' प्रत्यय करने पर भी-इतरम् । अश्-आदेश:
(२७) युष्मदस्मद्भ्यां ङसोऽश् ।२७। प०वि०-युष्मद्-अस्मद्भ्याम् ५ ।२ डस: ६।१ अश् १।१ ।
स०-युष्मच्च अस्मच्च तौ युष्मदस्मदौ, तभ्याम्-युष्मदस्मद्भ्याम् (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य इति चानुवर्तते । अन्वय:-युष्मदस्मद्भ्याम् अङ्गाभ्यां डस: प्रत्ययस्याऽश् ।
अर्थ:-युस्मदस्मद्भ्याम् अङ्गाभ्याम् उत्तरस्य डस: प्रत्ययस्य स्थानेऽशादेशो भवति।
उदा०-(युष्मद्) तव स्वम्। (अस्मद्) मम स्वम् ।
आर्यभाषा: अर्थ-(युष्मदस्मद्भ्याम्) युष्मद्, अस्मद् इन (अङ्गाभ्याम्) अङ्गों से परे (डस:) डस् (प्रत्ययस्य) प्रत्यय के स्थान में (अश्) अश् आदेश होता है।
उदा०-(युष्मद्) तव स्वम् । तेरा धन। (अस्मद्) मम स्वम् । मेरा धन ।
सिद्धि-(१) तव। युष्मद्+डस् । युष्मद्+अश् । युष्मद्+अ। तवद्+अ। तव+अ । तव।
यहां युष्मद्' शब्द से 'स्वौजस०' (४।१।२) से 'डस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'डस्' के स्थान में 'अश्’ आदेश है। यह आदेश शित् होने से 'अनेकालशित्सर्वस्व' (११११५५) से सवदिश होता है। तवममौ डसि' (१।१।५५) से 'युस्मद्' के म-पर्यन्त के स्थान में तव' आदेश, शेषे लोप:' (७।२।९०) से दकार का लोप और अतो गुणे (६।१।९६) से पररूप एकादेश (अ+अ-अ) होता है।
(२) मम। यहां 'अस्मद्' शब्द के स्थान में 'तवममौ ङसि' (७/२।९६) से 'मम' आदेश होता है। शेष कार्य पूर्ववत् है।
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