Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आदिभूत अकार के स्थान में किया जाता है। संयोगान्तस्य लोपः' (८।२।२४) से सकार का लोप और द्वितीयायां च' (७।२।८७) से आत्व होता है। ऐसे ही 'अस्मद्' शब्द से-अस्मान्।
युस्मद् और अस्मद् शब्द अव्यय है। अत: स्त्रीलिङ्ग और नपुंसकलिङ्ग में समान रूप होते हैं-युष्मान् ब्राह्मणी: । युष्मान् कुलानि । अभ्यम्-आदेश:
(३०) भ्यसोऽभ्यम् ।३०।। प०वि०-भ्यस: ६१ अभ्यम् १।१।। अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य, युष्मदस्मद्भ्यामिति चानुवर्तते । अन्वय:-युष्मदस्मद्भ्याम् अङ्गाभ्याम् उत्तरस्य भ्यस: प्रत्ययस्याऽभ्यम्।
अर्थ:-युष्मदस्मद्भ्याम् अङ्गाभ्याम् उत्तरस्य भ्यस: प्रत्ययस्य स्थानेऽभ्यमादेशो भवति।
उदा०-(युष्मद्) युष्मभ्यं दीयते। (अस्मद्) अस्मभ्यं दीयते।
आर्यभाषा: अर्थ-(युष्मदस्मद्भ्याम्) युष्मद् और अस्मद् इन (अङ्गाभ्याम्) अगों से परे (भ्यस:) भ्यस् (प्रत्ययस्य) प्रत्यय के स्थान में (अभ्यम्) अभ्यम् आदेश होता है।
उदा०-(युष्मद्) युष्मभ्यं दीयते । तुम्हारे लिये दान किया जाता है। (अस्मद्) अस्मभ्यं दीयते । हमारे लिये दान किया जाता है।
सिद्धि-युष्मभ्यम् । युष्मद्+भ्यस् । युष्मद्+अभ्यम् । युष्म०+अभ्यम् । युष्मभ्यम्।
यहां युष्मद्' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से 'भ्यस्' प्रत्यय है। इस सूत्र से 'भ्यस्' के स्थान में अभ्यम्' आदेश होता है। शेषे लोप:' (७।२।९०) से दकार का लोप और 'अतो गुणे (६।१।९६) से गुणरूप एकादेश है। ऐसे ही अस्मद्’ शब्द से-अस्मभ्यम् ।
विशेष: यहां काशिकावृत्ति में 'भ्यसो भ्यम्' ऐसा सूत्रपाठ मानकर 'भ्यस्' के स्थान में 'भ्यम्' आदेश स्वीकार किया है। 'भ्यम्' आदेश करने पर तथा शेषे लोप:' (७।२।९०) से दकार का लोप हो जाने पर बहुवचने झल्येत्' (७।३।१०३) से अकार के स्थान में एकार आदेश प्राप्त होता है इस दोष का 'अङ्गवृत्ते पुनर्वत्तावविधिर्निष्ठितस्य' इस परिभाषा के बल से परिहार किया है कि अगाधिकार में एक कार्य होने पर उत्तरकालवर्ती अङ्ग-कार्य की विधि नहीं होती है। गुरुवर पं० विश्वप्रिय शास्त्री ने 'भ्यसोऽभ्यम्' ऐसा सूत्रपाठ मानकर 'अभ्यम्' आदेश पढ़ाया है। इसमें परिभाषा के आश्रय की आवश्यकता नहीं है।
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