Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 06
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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सप्तमाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(जस्) अष्टौ तिष्ठन्ति । आठ हैं। (शस्) त्वम् अष्टौ पश्य । तू आठों को देख।
'अष्टाभ्यः' यहां अष्टन् शब्द का कृताकार (अष्टा) रूप में ग्रहा किया गया है। यही कृताकार रूप में 'अष्टा' शब्द का ग्रहण 'अष्टन आ विभक्तौ' (७।२८४) से विहित आकारादेश के विकल्प भाव का ज्ञापक है। इससे 'अष्ट तिष्ठन्ति, त्वम् अष्ट पश्य' यहां आत्व नहीं होता है।
सिद्धि-अष्टौ। अष्टन्+जस् । अष्ट आ+अस्। अष्टा+औश् । अष्टा+औ। अष्टौ।
यहां 'अष्टन्' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से 'जस्' प्रत्यय है। 'अष्टन आ विभक्तौ (७।२।८४) से 'अष्टन्' शब्द को आकार-आदेश होता है। इससे सूत्र से कृताकार 'अष्टा' शब्द से परे जस्' के स्थान में 'औश्' आदेश होता है। इस आदेश के शित होने से यह 'अनेकाल्शित्सर्वस्य' (१।१।५५) से सवदिश होता है। यह षड्भ्यो लुक् (७।१।२२) का अपवाद है। अत: औश्' का लुक नहीं होता है। लुक्-आदेश:
(२२) षड्भ्यो लुक् ।२२। प०वि०-षड्भ्य: ५ ।३ लुक् ११ । अनु०-अङ्गस्य, प्रत्ययस्य, जश्शसोरिति चानुवर्तते। अन्वय:-षड्भ्योऽङ्गेभ्यो जश्शसो: प्रत्यययोर्लुक् । अर्थ:-षट्संज्ञकेभ्योऽङ्गेभ्य उत्तरयोर्जश्शसो: प्रत्यययोलुंग भवति ।
उदा०-(जस्) षट् तिष्ठन्ति। पञ्च तिष्ठन्ति । सप्त तिष्ठन्ति । नव तिष्ठन्ति । दश तिष्ठन्ति । (शस्) त्वं षट् पश्य । पञ्च पश्य। सप्त पश्य । नव पश्य। दश पश्य ।
आर्यभाषाअर्थ- (षड्भ्य:) षट्-संज्ञक (अङ्गेभ्यः) अगों से परे (जश्शसो:) जश् और शस् (प्रत्यययो:) प्रत्ययों का लुक होता है।
___ उदा०-(जस्) षट् तिष्ठन्ति । छ: खड़े हैं। पञ्च तिष्ठन्ति । पांच खड़े हैं। सप्त तिष्ठन्ति । सात खड़े हैं। नव तिष्ठन्ति । नौ खड़े हैं। दश तिष्ठन्ति । दश खड़े हैं। (शस्) त्वं षट् पश्य । तू छ: को देख। पञ्च पश्य । तू पांच को देख । सप्त पश्य । तू सात को देख। नव पश्य । तू नौ को देख । दश पश्य । तू दश को देख।
सिद्धि-षट् । षष्+जस् । षष्+० । षड्+० षट्+० । षट् ।
यहां षट्-संज्ञक 'षष्' शब्द से स्वौजस०' (४।१।२) से 'जस्' प्रत्यय है। 'ष्णान्ता षट् (१।१।२४) से षष' की षट् संज्ञा है। इस सूत्र से जस्' प्रत्यय लुक
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