Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
Jain E
इस प्रकार से अपूर्वकरण की विशुद्धि का क्रम जानना चाहिये और वह यथाप्रवृत्तकरण से कुछ विलक्षण है । क्योंकि यथाप्रवृत्तकरण में उसके संख्यातवें भाग तक जघन्य विशुद्धि अनन्तगुण कहने के बाद एकान्तरित जघन्य- उत्कृष्ट विशुद्धि कही है और इस दूसरे करण में तो पहले ही समय से जघन्य, उसी समय की उत्कृष्ट इस तरह एक-एक समय की जघन्य - उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुण कही है। सुगमता से समझने के लिये जिसका प्रारूप इस प्रकार है
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
१ प्रथम समय की जघन्यविशुद्धि सर्वस्तोक उससे
२ दूसरे ३ तीसरे
चौथे ५ पाँचवें
६ छठे
७ सातवें
आठवें
नौवें
ܡ
"
11
""
11
77
"}
ܙܙ
11
"
""
ܙܕ
=
13
""
""
ܕܕ
77
11
17
"}
11
"
"
114
""
"}
;"
13
11
अपूर्वकरण विशुद्धि
,,
"3
"}
""
"
11
"1
"
36
--
१ प्रथम समय की उत्कृष्ट विशुद्धि अनन्तगुण उससे
-२ दूसरे - ३ तीसरे
-४ चौथे
- ५ पाँचवें
-६ छठे
-७ सातव
-- ८ आठव
- ६ नौवें
"
"
"
י,
11
17
""
37
נן
(1
}
"
31
11
"
=
""
11
11
""
""
17
17
77
4
"
"}
"
:)
13
1
"
""
=
31
""
3
11
ני
"
"
"
""
4
उपशमनादि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : गाथा १०
१७