Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text ________________
उपशमनादि करणत्रय-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट १ १४६
अन्तोमुहुत्तमेत्तं तस्सवि संखेज्जभागतुल्लाओ। गुणसेढी सम्वद्ध तुला य पएसकालेहिं ॥८४॥ करणाय नोवसंतं संकमणोवट्टणं तु दिट्ठितिगं । मोत्तुण विलोमेणं परिवडई जा पमत्तोति ।।८५॥
ओकड्ढित्ता दलियं पढमठितिं कुणइ विइयठिइहितो। उदयाइ विसेसूणं आवलिउप्पि असंखगुणं ॥८६।। जावइया गुणसेढी उदयवई तासु होणगं परओ। उदयावलीमकाउं गुणसेढिं कुणइ इयराणं ॥८॥ संकमउदीरणाणं नत्थि विसेसो उ एत्थ पुव्वुत्तो। जं जत्थ उ विच्छिन्नं जायं वा होइ तं तत्थ ॥८॥ वेइज्जमाण संजलण कालाओ अहिगमोहगुणसेढी। पडिवत्तिकसाउदए तुल्ला सेसेहि कम्मेहिं ॥८६॥ खवगुवसामगपच्चागयाण दुगुणो तहिं तहिं बंधो। अणुभागोऽयंतगुणो असुभाण सुभाण विवरीओ ॥१०॥ परिवाडीए पडिउं पमत्तइयरत्तणे बहू किच्चा। देसजई सम्मो वा सासणभावं वए कोई ॥११॥ उवसमसम्मत्तद्धा अन्तो आउक्खया धुवं देवो । जेण तिसु आउएसु बद्ध सु न सेढिमारुहई ॥१२॥ सेढिपडिओ तम्हा-छडावलि सासगो वि देवेसु । एगभवे दुक्खुत्तो चरित्तमोहं उवसमेज्जा ॥६॥ दुचरिमसमये नियगोदयस्स इत्थीनपुसगोण्णोण्णं । समयित्तु सत्त पच्छा किन्तु नपुसो कमारद्ध ॥६४|| मूलुत्तरकम्माणं पगडिट्ठितिमादि होइ चउभेया। देसकरणेहिं देसं समइ जं देससमणा तो ॥६५॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224