Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
View full book text
________________
१६८
पंचसंग्रह (8) गुणाकार रूप से उपशमित करते हैं और अपूर्वकरण के प्रथम समय से मिथ्यात्व और मिश्र मोहनीय का जो गुणसंक्रम प्रारम्भ हुआ था वह अन्तरकरण में प्रवेश करने के बाद भी अन्तम हर्त तक चालू रहता है। तत्पश्चात् अन्तरकरण में ही इन दोनों प्रकृतियों का विध्यात संक्रम आरम्भ होता है और शेष सर्व स्वरूप पहले की तरह ही समझना चाहिये।
इस प्रकार दर्शनत्रिक की उपशमना करके उपशम सम्यक्त्वी अथवा क्षायिक सम्यक्त्वी चारित्रमोहनीय को उपशमित करने का प्रयत्न करते हैं।
00
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org