Book Title: Panchsangraha Part 09
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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उपशमनादि करणत्रय - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट ६
१७१
असंख्यातवां भाग बाकी रख शेष सभी असंख्यात भागों का नाश करता है । इस तरह बहुत से स्थितिघात होने से मिथ्यात्व की स्थिति मात्र एक उदयावलिका प्रमाण रहती है और शेष सभी का नाश हो जाता है ।
जिस समय से सत्तागत मिथ्यात्व की स्थिति के असंख्यात भाग कर एक असंख्यातवाँ भाग रख असंख्यात असंख्यात भागों का नाश करने की शुरुआत की उस समय से मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय की सत्तागत स्थिति के संख्यात भाग कर एक-एक संख्यातवाँ भाग रख शेष सभी संख्यात भागों का नाश करता है । इस प्रकार मिश्र तथा सम्यक्त्व मोहनीय के भी बहुत से स्थितिघात व्यतीत होते हैं और जब मिथ्यात्व की स्थिति उदयावलिका प्रमाण रहती है तब मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय की पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण स्थितिसत्ता रहती है ।
द्विचरम स्थिति खंड तक स्थितिघात से उतारे हुए मिथ्यात्व के दलिकों को नीचे स्व में और मिश्र एवं इसी प्रकार सम्यक्त्व में तथा मिश्र मोहनीय के स्थितिघात से उतारे गये दलिकों को स्व में और सम्यक्त्व में रखता है एवं चरम स्थितिघात से उतारे हुए मिथ्यात्व के दलिकों को मिश्र तथा सम्यक्त्व मोहनीय में और मिश्रमोहनीय के दलिकों को सम्यक्त्वमोहनीय में डालता है तथा सम्यक्त्वमोहनीय के दलिकों को अपने उदय-समय से गुणश्रेणि के क्रम से स्थापित करता है ।
मिथ्यात्व की उदयावलिका को स्तिबुकसंक्रम द्वारा सम्यक्त्वमोहनीय में संक्रमित करके और भोग कर मिथ्यात्व की स्थिति का संपूर्ण नाश करता है ।
जिस समय मिथ्यात्वमोहनीय की मात्र उदयावलिका जितनी स्थिति रहती है, उस समय से सत्तागत मिश्र और सम्यक्त्व मोहनीय की स्थिति के असंख्यात भाग कर एक असंख्यातवाँ भाग रख शेष सभी असंख्यात भागों का नाश करता है और बाकी रहे एक असंख्यातवें भाग के बार-बार असंख्यात भाग कर तथा एक-एक असंख्यातवाँ भाग रख शेष असंख्यात भागों का नाश कर-कर के बहुत से स्थितिघात होने के बाद मिश्रमोहनीय की स्थितिसत्ता उदयावलिका प्रमाण रखता है और उस उदयावलिका को भी स्तिबुकसंक्रमण से सम्यत्वमोहनीय में संक्रमित करके सत्ता में से दूर करता है ।
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